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चींटी चली ले अनाज का दाना{{KKGlobal}}दाना तो क्या दाना तो चिड़िया ले उड़ती है{{KKRachnaयह था दाने का कण दाने का कोई सौंवा हिस्सा|रचनाकार=अनूप सेठीपक्की टाइलों के चमकीले फर्श में}}सुरक्षा <Poem>सड़क बहुत चौड़ी और सफाई के कड़े और मुस्तैद इँतजाम मेंचली ले चींटी अनाज का कणमजबूत बहुत किस कोने से निकली कमरे के किस कोने में जाती हैसीमेंट की सर्द सिल्लियाँ बेपरवाह
कहाँ से मिला होगा दाने नीचे टेलिफोन और बिजली की तारों का कणजाल बच्चे पीने के पानी की जूठन या मेहमान नालियां शहर भर की लापरवाहीगँदगी के नाले चलाएमान ऊपर हर प्रजाति का वाहन अपनी अपनी आग बुझाने दौड़े जा रहा
दाने का कण रोटी का होगा डबलरोटी काअगल-बगल पारदर्शी अपारदर्शी चमचमाती दुकानें पीजा का या केक काडरावनी स्वागती मुद्रा में ताजा होगा या बासा कल या परसों कालील जाने को आतुर पान और चाय और मोचियों की टपरियाँबीच की खाली जगहों में या होगा बाजार इनकी वजह से आई बनी बनाई किसी और चीज कादिखती खाली जगहों में एक पैर पर खड़ी हुईं
होगा अगर गेंहूँ का तो किस दुकान दिन में एक बार तबेलों से आया होगानिकल कर सुपर बाजार या छोटे बणिए काउदासी सम्प्रदाय की गाएँराशन का होगा या खुले बाजार काजहाँसड़क सम्भ्राँत इलाके से गुजरती है हरियाणा का या खण्डवा काबीज किस सँस्थान में पनपा होगाटहलती हैं, स्थिर हो जाती हैं, पसर जाती हैं पुश्तैनी बीज महानगर इतनी बेतकल्लुफी तो क्या पंहुचेगाइस इलाके की जनानियों को वैज्ञानिक मगर विदेश जा पँहुचा होगाक्या पता गेंहूँ आयात वाला होसंसद गूँजी होगी पहले भी बाद किटी, क्लब या पार्लर में भीनहीं नसीब अगर सिर्फ बीज होगा आयातितज़ाहिर है घर या बाथरूम में तो भी लँबा सफर तय किया होगा गेंहूं नेनहीं ही
न भी तो भी क्या खबर किन किन जहाजों ट्रकों ट्रेक्टरों बोरों में लदा होगाकिसी बड़े से बड़े फन्ने खाँ की गोदामों में ठुँसा होगाऊँची से ऊँची नाक वाली गाड़ी हम्मालों मजदूरों मंहगे से मंहगे गराज में नियमित मालिश करवाने के पसीने को बावजूद बाबुओं अफसरों नेताओं को नजदीक से निरखा होगा गेंहूं नेसड़क के किसी भी छोर पर कभी भी धरना दे सकती है
चींटी को नहीं पता दाने का इतिहासजैसे गायों और गाड़ियों में कोई बहनापा हो वह तो जिसने खाया उसने भी क्या जानाहांलांकि अखबार सभी ने पढ़ना सीखा हैजैसे यही हैं सत्याग्रहियों की सच्ची वारिस
यह भी हो सकता है दाने का कणउनका न हो जो अब इस मकान में रहते यही बचे रह गए हैंइच्छाधारी जीव वो हो उनका बाकी सब जो रहते थे साल भर पहले है सड़क पर या उससे भी पहलेसड़क के बाहर अखबारें तो वे भी पढ़ते थेहै किसी और के इच्छाधीन
उनका भी न हो उन मजदूरों का हो पीठ पीछे कश हॉर्न हैं जो टाट की टट्टियों में रहते थेइस आलीशान इमारत ज़मीन को बनाने के वास्ते इसी जगहदहलाती घर्र घर्र है सिर्फ कँक्रीट थे रेत बजरी और पत्थर थे और चूल्हा जलता थाभाग लो वरना कुचले जाओगे विकास की दावानल भड़की है सड़क छोड़ घुसोगे घरों में पनाह पाने महानगरों नगरों कस्बों गांवों तक मेंएक रात से ज्यादा गुज़ार नहीं पाओगे एक बार बीच सड़क खदेड़े जाओगे बार बार
चींटी का क्या भरोसाहांफते हुए शायद कहीं दिख जाए कभीनिकाल लाई हो नींव बरसात के बाद की गहराइयों सेजितनी छोटी उतनी खोटीवे अखबार नहीं पढ़ते थेभीगी हुई सड़क तस्वीर की मानिंद
क्या पता दाने का यह कण गेंहूं के उसकिनारे पर चलते हैं असहाय बूढ़े, हारे हुए नागरिक ढेर का हिस्सा हो लुटे हुए बदहवास मुसाफिर या जो मोहनजोदाड़ो की खुदाई में मिला अर्थी को कंधा दे रहे होते हैं और संग्रहालय में रखा है सजाकर काला कालाबच्चे भी बूढ़े होते हैं यहीं सभ्यता की निशानी अमरभविष्य का बोझ लादे हुए
अगर यह कण गेंहूँ सड़क है ऐसी बेमुरव्वत निशान कोई छूटता नहीं किसी तरह का न गुड़ का होतो कहां उलझन घट जाएगीपर यह चींटी जाती सड़क जिन्होंने बनवाई नहीं है किस कोने में सड़क की लगाम उनके भी हाथ में।सोच सोच उलझन और बल खाती है। (19971998)
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