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Kavita Kosh से
अपने शहर में वापस आओगे
तुम मुझे गाओगे जैसे अकाल में
खेत गाए जात्ये जाते हैं
और अभियोग की भाषा के लिए
टटोलते फिरोगे वे चेहरे
::जो कविता के भ्र्म भ्रम में
::जीने के पहले ही
::परदे के पीछे
नींद में मर चुके हैं।
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