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भली कही भूपति त्रिभुवनमें को सुकृती-सिरताज? |
तुलसि राम-जनमहितें जनियत सकल सुकृत को साज ||
 
राजन! राम-लषन जो दीजै |
जस रावरो, लाभ ढोटनिहूँ, मुनि सनाथ सब कीजै ||
डरपत हौ साँचे सनेह-बस सुत-प्रभाव बिनु जाने |
बूझिय बामदेव अरु कुलगुरु, तुम पुनि परम सयाने ||
रिपु रन दलि, मख राखि, कुसल अति अलप दिननि घर ऐहैं |
तुलसिदास रघुबंसतिलककी कबिकुल कीरति गैहैं ||
 
रहे ठगिसे नृपति सुनि मुनिबरके बयन |
कहि न सकत कछु राम-प्रेमबस, पुलक गात, भरे नीर नयन ||
गुरु बसिष्ठ समुझाय कह्यो तब हिय हरषाने, जाने सेष-सयन |
सौम्पे सुत गहि पानि, पाँय परि, भूसुर उर चले उमँगि चयन ||
तुलसी प्रभु जोहत पोहत चित, सोहत मोहत कोटि मयन |
मधु-माधव-मूरति दोउ सँग मानो दिनमनि गवन कियो उतर अयन ||
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