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पेड़ / सरोज परमार

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[[Category:कविता]]
<poem>
१.
उसे हरी बेल समझ
उँगली पकड़ चलाया था
सहलाया था
पर वह निकली कोंचफली
दे गई अन्तहीन खुजली
पेड़ परेशान-सा खड़ा है
आकाश में बाहें फैलाए.

२.
ऊँची डाल पर बैठा तोता
अण्ड-बण्ड बोलता है
बोल-बोल थकता है
उड़ता है फिर थाम लेता है
दूसरी फुनगी
इतराते हुए बाँचता है
रटन्त विद्या
पेड़ बेलाग है
जंगल अपने में डूबा-सा
कीड़े बेपरवाह-से और जानवर चौकन्ने.

</poem>
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