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बढ़ रहा बोझ। वह मानव शिशु
भारी-भारी हो रहा।
 
वह कौन? कि सहसा प्रश्न कौंधता अंतर में –
'वह है मानव परंपरा'
चिंघाड़ता हुआ उत्तर यह,
'सुन, कालिदास का कुमारसंभव वह।'
मेरी आँखों में अश्रु और अभिमान
किसी कारण
अंतर के भीतर पिघलती हुई हिमालयी चट्टान
किसी कारण;
तब एक क्षण भर
क्रमशः...
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