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वैराग्य-संदीपनी / भाग २ / तुलसीदास
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यह दिन रैन नाम उच्चरै,
वह नित मान अगिनी मंह जरै॥ [४१] [चौपाई]
दास रता एक नाम सों, उभय लोक सुख त्यागि,
तुलसी न्यारो ह्वै रहै, दहै न दुःख की आगि [४२]
</span>
</poem>
मृदुल कीर्ति
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