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ईमानदार संस्कार-मयी
 
सन्तुलित नयी गहरी चेतना
 
:अभय होकर अपने
वास्तविक मूलगामी निष्कर्षों तक पहुँची
 
ऐसे निष्कर्ष कि जिनके अनुभव-अस्त्रों से
 
वैज्ञानिक मानव-शस्त्रों से
 
मेरे सहचर हैं ढहा रहे
 
वीरान विरोधी दुर्गों की अखण्ड सत्ता ।
 
उनके अभ्यन्तर के प्रकाश की कीर्तिकथा
 
जब मेरे भीतर मंडरायी
 
मेरी अखबार-नवीसी ने सौ-सौ आंखें पायीं ।
 
कागज़ की भूरी छाती पर
:नीली स्याही के अक्षर में था प्रकट हुआ
 
छप्पर के छेदों से सहसा झाँका वह नीला आसमान
 
वह आसमान जिसमें ज्योतिर्मय
:कमल खिला
::रवि का ।
शब्दों-शब्दों में वाक्यों में
 
मानवी-अभिप्रायों का सूरज निकला
:उसकी विश्वाकुल एक किरन
:तुम भी तो हो,
वीरान में टूटे विशाल पुल के एक खण्डहर में
 
उगे आक के फूलों के नीले तारे,
 
मधु-गन्ध भरी उद्दाम हरी
:चम्पा के साथ
::उगे प्यारे,
मानो जहरीले अनुभव में
 
मानव-भावों के अमृतमय
:शत-प्रतिभाओं के अंगारे,
::तुम-जैसे-जन
मेरे जीवन निर्झर के पथरीले तट पर
 
आ खड़े हुए,
 
तब मैंने नहीं पुकारा — 'तुम आ जाओ'
 
तब मैंने नहीं कहा था यों
 
मेरे मन की जल धारा में
 
तुम हाथ डुबो,
:मुँह धो लो, जल पी लो, अपना
:मुख बिम्ब निहारो तुम ।
जब मेरे मन की पथरीली
 
निर्झर धारा के फूलों पर,
 
गहरी धनिष्ठता की असीम
 
गम्भीर घटाएँ घुमड़ी थीं,
 
गम्भीर मेघ-दल उमड़े थे,
 
औ' जीवन की सीधी सुगन्ध
 
जब महकी थी
:ईमाम-भरे-बेछोर सरल मैदानों पर
:डोली थीं,
तब मैंने कहा था अपनी आँखों में
 
भावातिरेक तुम दरसाओ ।
 
जब आसमान से धरती तक
:आकस्मिक एक प्रकाश-बेल
:सहसा तुम बेपर्द हुईं
जब मेरे-मन-निर्झर-तट पर
 
तब मैंने नहीं कहा थी मुझको इस प्रकार
 
तुम अपना अंतर का प्राकार बना जाओ ।
 
लेकिन संघर्षों के पथ पर
:ऐसे अवसर आते ही हैं,
:इस प्रकार,
जीवन के प्रखर-समर्थक से प्रश्न-चिन्ह
 
बौखला रहे हों दुर्निवार !!
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