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वह दिन / अनिल जनविजय

5 bytes added, 21:08, 3 फ़रवरी 2009
|रचनाकार=अनिल जनविजय
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 <Poem>
उचकी वह पंजों पर थोड़ा-सा
 
फिर मेरी ओर होंठ बढ़ाए
 
चूमा उसे मैं ने यों, ज्यों मारा कोड़ा-सा
 
यह अहम हमारा हमें लड़ाए
 
फिर झरने लगे आँसू वहाँ निरंतर
 
धुल गए बोझल से वे पल-छिन
 
सावन की बारिश में निःस्वर
 
डूब गया वह उदास दिन
 
(2006 में रचित)
</poem>
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