भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे नहीं मालूम / केशव

1,154 bytes added, 22:05, 5 फ़रवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...
{{KKGlobal}}

{{KKRachna

|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
मुझे नहीं मालूम
तुम यहां होते
तो यह शहर
किस करवट बैठता
जिस करवट यह बैठा है
फिलहाल वहां हुआ करता था घना जंगल कभी
अब यहां लोग हैं
लोग ही लोग
पेड़ों से कई गुना अधिक
छाया के लिए हाहाकार मचाते
हरियाली के लिए नारे लगाते
आत्मदाह की धमकी देते
अखबारों के लिए
फोटो खिंचवाते
लेकिन उसी जगह
तामीर होती कालोनी में
एक फ्लैट पाने के लिए
सिफारिशी चिट्ठी की तलाश में
दर-बदर की ठोकरें खाते।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits