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माँ ने छोटी-छोटी खुशियों की ओर कभी हम मुड़कर देखते नहीं कहा ये करो वो मत करो बड़ी खुशियाँ दिखती नहीं हमें पिता हमेशा कहते रहे यही उन दोनों के कहने के बीच अंतर था उतना उम्र गुजर जाती है यों हीजितना होता है होने न होने के बीच वह दोनों के कथन के बीच उगता रहा कुछ ऐसे जैसे सुदूर टिमटिमाती रोशनियाँ। द्वार-द्वार खटखटाते हुए।
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