भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौसम / केशव

2,885 bytes added, 19:35, 6 फ़रवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...
{{KKGlobal}}

{{KKRachna

|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
मत होना उदास
लौटकर बेशक नहीं आते मौसम
पर उनकी आहट पर तो
लगे रहते हैं कान
जिसे लेकर
रच सकते हैं हम
अपना ही एक मौसम
दोनों की गंध से पगा
दोनों की उम्मीद से
कहीं अधिक सगा
जिसके लिए कम पड़ती पृथ्वी
कम पड़ता ब्रह्मांड
ऐसा है कुछ हम दोनों के बीच
अविभाज्य
छाना नहीं जा सकता
किसी छननी से
रेगिस्तान नहीं होना है हमें
न होना है एक दूसरे की पीठ
एक दूसरे की दीठ पर
ठहरा हुआ ओसकण भी नहीं
एक दूसरे के लिए
होना है हमें
जैसे कुछ भी न होकर
होता है सब कुछ
जैसे
आसमान में दो सितारे
अलग-अलग होकर भी
परस्पर एक दूसरे के
आकर्षण से बिंधे
हम दोनों एक-दूसरे उदासी नहीं
रोशनी हैं एक दसूरे की।

'''२'''

चाहा था
ओढ़ लूँ तुम्हें
जैसे धरती ओढ़ लेती है हरियाली
पर्वत ओढ़ लेता है बर्फ़
नदी अपना प्रवाह
बाँसुरी अपनी तान
पर तुम हर बार गुज़र गईं
मेरी अगल-बगल
अपनी खुशबू का गुलदस्ता
अपने राग की अनुगूँज छोड़
और अपने भीतर खिले
हर मौसम का रंग
जिसमें सराबोर
प्रतीक्षा करता हूँ हर पल
तुम्हारे लौटने की
यह जानते हुए भी
कि मौसम पराये होते हैं
जाकर फिर लौटते नहीं कभी
लौटकर आती है सिर्फ़?
उनकी टीस
उनकी दी पीड़ा
जिससे मुक्ति नहीं
विचित्र है फिर भी
चलती रहती है
मौसमों की प्रतीक्षा।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits