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अहिंसा== भारतभूषण अग्रवाल की रचनाएँ ==[[Category:भारतभूषण अग्रवाल]]
खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
सोच रहा था मैं मन ही मन : 'हिटलर बेटा बड़ा मूर्ख है,जो लड़ता है तुच्छ-क्षुद्र मिट्टी के कारण क्षणभंगुर ही तो है रे ! यह सब वैभव-धन। अन्त लगेगा हाथ न कुछ, दो दिन का मेला। लिखूँ एक ख़त, हो जा गाँधी जी का चेला। वे तुझ को बतलायेंगे आत्मा की सत्ता होगी प्रकट * [[अहिंसा की तब पूर्ण महत्ता । कुछ भी तो है नहीं धरा दुनिया के अन्दर ।' छत पर से पत्नी चिल्लायी : " दौड़ो , बन्दर !"/ भारतभूषण अग्रवाल]]