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प्रवाह / केशव

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एक ख़िड़की है
आधी खुली
न जाने
किस मौसम के
इंतज़ार में

एक सपना है
बुन रहे जिसे
चुपचाप काँपते हाथ

एक इच्छा है
पतझड़ की ओट
हरियाली
गुपचुप

एक पैंटिंग है
ब्रश के आखिरी स्ट्रोक के इंतज़ार में
जो फूंक दे
उसकी निर्जीव काया में प्राण

एक नदी है
है सूखी
पानी-पानी चिल्लाती
समुन्द्र की तालाश में

व्क पंछी है
प्यास की मुंडेर पर
बारिश के लिए
अधीर

एक झिझक है
कुछ ठगी-ठ्गी सी
ख़ुलने को आतुर
एक कोंपल की तरह।
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