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सभ्य / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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[[Category:कविता]]
<poem>
वे सो जाते हैं
आती रहती हैं
पड़ौसी कमरे से
सिसकियाँ

उठता रहता है
मुहल्ले में शोर
क्रंदन आर्तनाद

जलता रहता है
लगाई गई गई आग में
गुस्सैल गरीब का घर

होता रहता है
सामुहिक बलात्कार

शहर के जंगल से ग़ुज़र कर
अपनी पोशाक से
झाड़् कर धूल
वो सो जाते हैं

किंचित नहीं पिघलती
ज़िंदा जलते
आदमी की आँच से
उनके अंदर की बर्फ़
नहीं पड़ता कोई फ़र्क़

वे सो जाते हैं

</poem>
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