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निकल न चौखट से से घर की प्यारे जो पट के ओझल ठिटक रहा है
सिमट के घट से तिरे दर्स दरस को नयन में जी आ, अटक रहा है
अगन ने तेरी बिरह की जब से झुलस दिया है मिरा कलेजा