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|रचनाकार=सौदा
}}
[[category: ग़ज़ल]]

<poem>

बाज़े1 ऐसे भी हैं नामाक़ूल है जिनका सुख़न
अपनी शोहरत होने को समझे हैं वो तदबीर जंग

पोचगोई2 से नहीं हटते ब-मैदाने-सुख़न3
करते हैं गोया वो जकड़कर पाँव में ज़ंजीर जंग

अबरू-ओ-मिश़गाँ4 के मजमूँ में करें जो उनके दख़्ल
करने ये उससे लगें नादाँ ब-तेग़ो-तीर जंग

मैं तो हैराँ हूँ अब तो इन नाशायिरों की वज़्अ5 पर
करते-फिरते हैं जो पढ़-पढ़ शेरे-बेतासीर6 जंग

एक उनमें से लगा 'सौदा' के आगे पढ़ने शे'र
वास्ते इतने कि ता कीजे ब-ईं-तज़वीर7 जंग

सुनके ये बोला: ख़ुदा के वास्ते रखिए मुआफ़
मैं तो शायर ग़रीब और आप हैं शमशीर जंग

'''शब्दार्थ:
1. कुछ एक 2. सतही काव्य रचना 3. काव्य के रण क्षेत्र में 4. भवों और पलकों 5. तौर-तरीक़ा 6. प्रभावहीन काव्य 7. झूठा बहाना बनाकर
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