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|रचनाकार=सौदा
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[[category: ग़ज़ल]]

<poem>
असबाब से जहाँ के कुछ अब पास गो1 नहीं
ये फ़िक्र तो नहीं कि ये है और वो नहीं

गो मुंतज़र2 दुआ का हमारे है अब क़ुबूल
दस्तो-दहन3 पसारिए, अपनी ये ख़ू4 नहीं

बाँधा हम इस चमन में अगर आशियाँ तो क्या
है गुल में आबो-रंग, वफ़ा की तो बू नहीं

आँखें तो ऐसी ख़ल्क न होईं5 न होयेंगी
पर चाहिए कि उनमें मुरव्वत हो, सो नहीं

सरगोशी6 पर मिरी तू बर-आशुफ़्ता7 क्यों हुआ
मैं दर्दे-दिल कहा है न, कुछ और तो नहीं

जो चाहें यार हाल से दें मेरे इश्तहार
मैं दर्दे-दिल कहा है न, कुछ और तो नहीं

'सौदा' न करते काश तिरा वस्फ़8 पेशे-यार9
अब हमको उससे आँख मिलाने का रू10 नहीं

'''शब्दार्थ:
1. हालाँकि 2. प्रतीक्षक 3. हाथ और मुँह 4. आदत 5. नहीं रची गयीं 6. फुसफुसाहट 7. नाराज़ 8. गुणगान 9. प्रियतम के सामने 10. हौसला
</poem>