भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यादों की राहगुज़र / अविनाश

No change in size, 06:22, 12 फ़रवरी 2009
नीलकंठ काली कोयल की कूक गुलाब महकता है
सुबह दोपहर षाम शाम सेठ के आगे पीछे करते हैं
बेशर्मी से भरा हुआ श्रम बन कर घाव टभकता है
26
edits