भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कि
विरह का यह रंग
सिर्फ़ मेरे लिए नही नहीं है ...
सही - ग़लत की उलझन में
बीता जीवन का मधुर पल,
टूटा न जाने कब कैसे
कसमों ,जन्मो जन्मों का वह नाता
साथ है तो ..दोनों तरफ़
अब सिर्फ़ तन्हाई
जवाब दे जिंदगीज़िंदगी
तू इतनी बेदर्द क्यों है ?..
</poem>