भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शोर में / नीरज दइया

1,057 bytes added, 16:55, 13 फ़रवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} <Poem> यहाँ वर्षों बाद वापस लौट...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=
}}
<Poem>
यहाँ वर्षों बाद
वापस लौटा हूँ
क्यों चाहता हूँ देखना -
वह घर-गली-आंगन
अब क्या लेना-देना
उस बीते वक़्त के निशानों से ।

सब कुछ बदल गया
जब बदलता है वक़्त
तब नहीं करता
किसी मन की परवाह ।

अच्छा है मित्र
तू पुष्ट कर रहा है कविता को
इस शोर में
तुम्हारे जैसों के दम पर ही
बुद्धुओं के सींग-पूँछ
अखंड हैं ।
लोग कविता को
बुद्धुओं के सींग-पूँछ समझते हैं !


'''अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा'''
</poem>