भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} <poem> गुलाब तू बदरंग हो गया है बद...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
<poem>
गुलाब
तू बदरंग हो गया है
बदरूप हो गया है
झुक गया है
तेरा मुंह चुचुक गया है
तू चुक गया है ।

ऐसा तुझे देख कर
मेरा मन डरता है
फूल इतना डरावाना हो कर मरता है!

खुशनुमा गुलदस्ते में
सजे हुए कमरे में
तू जब

ऋतु-राज राजदूत बन आया था
कितना मन भाया था-
रंग-रूप, रस-गंध टटका
क्षण भर को
पंखुरी की परतो में
जैसे हो अमरत्व अटका!
कृत्रिमता देती है कितना बडा झटका!

तू आसमान के नीचे सोता
तो ओस से मुंह धोता
हवा के झोंके से झरता
पंखुरी पंखुरी बिखरता
धरती पर संवरता
प्रकृति में भी है सुंदरता
</poem>