भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>वो महकती पलकों की ओट से कोई तारा चमका था रात मेंमेरी बंद मुठ्ठी ना खोलिये वही कोहीनूर था हाथ में
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~मैं तमाम तारे उठा-उठा कर ग़रीबों में बाँट दूँकभी एक रात वो आसमाँ का निज़ाम<ref>व्यवस्था</ref> दे मेरे हाथ में
वो महकती पलकों की ओट से अभी शाम तक मेरे बाग़ में कहीं कोई तारा चमका फूल खिला न था रात में<br>मेरी बंद मुठ्ठी ना खोलिये वही कोहीनूर था हाथ मुझे खुशबुओं में बसा गया तेरा प्यार एक ही रात में<br><br>
मैं तमाम तारे उठा-उठा कर ग़रीबों में बाँट दूँ<br>तेरे साथ इतने बहुत से दिन तो पलक झपकते गुज़र गयेकभी एक हुई शाम खेल ही खेल में गई रात वो आसमाँ का निज़ाम दे मेरे हाथ बात ही बात में<br><br>
अभी शाम तक मेरे बाग़ में कहीं कोई कभी सात रंगों का फूल खिला न था<br>हूँ, कभी धूप हूँ, कभी धूल हूँमुझे खुशबुओं में बसा गया तेरा प्यार एक ही रात मैं तमाम कपडे बदल चुका तेरे मौसमों की बरात में<br><br>
तेरे साथ इतने बहुत से दिन तो पलक झपकते गुज़र गये<br>{{KKMeaning}}हुई शाम खेल ही खेल में गई रात बात ही बात में<br><br> कभी सात रंगों का फूल हूँ, कभी धूप हूँ, कभी धूल हूँ<br>मैं तमाम कपडे बदल चुका तेरे मौसमों की बरात में<br><br><br> निज़ाम = व्यवस्था<br><br/poem>