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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों मेंबस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखाहम जवाब क्या देते खो गये सवालों में
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में <br>रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ाबस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में <br><br>
पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा<br>हम जवाब क्या देते खो गये सवालों में <br><br> रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा<br>जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में <br><br> मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे<br>रात के मुसाफ़िर थे खो गये उजालों में<br><br/poem>