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{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
एक रोज़ मैंने देखी ऊसर ज़मीन
कुछ रोज़ बाद वहाँ कुदाल लिए एक आदमी था
एक रोज़ मैंने देखी बित्ता भर नमी
कुछ रोज़ बाद वहाँ पत्थरों से झाँकती दूब थी हरी कच्च
पत्थर अब दूब में मगन हो रहे थे
दूब अब आदमी में हरी हो रही थी
रचनाकाल : जुलाई 1991
</poem>
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|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई
}}
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एक रोज़ मैंने देखी ऊसर ज़मीन
कुछ रोज़ बाद वहाँ कुदाल लिए एक आदमी था
एक रोज़ मैंने देखी बित्ता भर नमी
कुछ रोज़ बाद वहाँ पत्थरों से झाँकती दूब थी हरी कच्च
पत्थर अब दूब में मगन हो रहे थे
दूब अब आदमी में हरी हो रही थी
रचनाकाल : जुलाई 1991
</poem>