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कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मुकुटधर पांडेय]]|संग्रह=}}
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:मुकुटधर पांडेय]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ <Poem>
छोटे-छोटे भवन स्वच्छ अति दृष्टि मनोहर आते हैं
 
रत्न जटित प्रासादों से भी बढ़कर शोभा पाते हैं
 
बट-पीपल की शीतल छाया फैली कैसी है चहुँ ओर
 
द्विजगण सुन्दर गान सुनाते नृत्य कहीं दिखलाते मोर ।
 
 
शान्ति पूर्ण लघु ग्राम बड़ा ही सुखमय होता है भाई
 
देखो नगरों से भी बढ़कर इनकी शोभा अधिकाई
 
कपट द्वेष छलहीन यहाँ के रहने वाले चतुर किसान
 
दिवस बिताते हैं प्रफुलित चित, करते अतिथि द्विजों का मान ।
 
 
आस-पास में है फुलवारी कहीं-कहीं पर बाग अनूप
 
केले नारंगी के तरुगण दिखालते हैं सुन्दर रूप
 
नूतन मीठे फल बागों से नित खाने को मिलते हैं ।
 
देने को फुलेस–सा सौरभ पुष्प यहाँ नित खिलते हैं।
 
 
पास जलाशय के खेतों में ईख खड़ी लहराती है
 
हरी भरी यह फसल धान की कृषकों के मन भाती है
 
खेतों में आते ये देखो हिरणों के बच्चे चुप-चाप
 
यहाँ नहीं हैं छली शिकारी धरते सुख से पदचाप
 
 
कभी-कभी कृषकों के बालक उन्हें पकड़ने जाते हैं
 
दौड़-दौड़ के थक जाते वे कहाँ पकड़ में आते हैं ।
 
बहता एक सुनिर्मल झरना कल-कल शब्द सुनाता है
 
मानों कृषकों को उन्नति के लिए मार्ग बतलाता है
 
गोधन चरते कैसे सुन्दर गल घंटी बजती सुख मूल
 
चरवाहे फिरते हैं सुख से देखो ये तटनी के फूल
 
ग्राम्य जनों को लभ्य सदा है सब प्रकार सुख शांति अपार
 
झंझट हीन बिताते जीवन करते दान धर्म सुखसार
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