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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी }} <poem> एक जीवित पत्थर की दो पंक्तिया...
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{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
}}
<poem>
एक जीवित पत्थर की दो पंक्तियाँ
रक्ताभ, उत्सुक
काँपकर जुड़ गई
:मैंने देखा :
:मैं फूल खिला सकता हूँ।
(1960)
</poem>
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एक जीवित पत्थर की दो पंक्तियाँ
रक्ताभ, उत्सुक
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:मैं फूल खिला सकता हूँ।
(1960)
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