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|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
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<poem>
क्या ऐसा भी हो सकता है
जैसा सोचा हो
सब वैसा ही हो जाए।

सर्द मौसम में
धूप निकल आए
सब गुनगुना जाए।

एकदम ठीक हो जाए बीमार
बिस्तर छोड़ चलने लगे
वैसा ही अकड़ने लगे।

क्या ऐसा भी हो सकता है
गरीब बच्चों के न हों बड़े पेट
दालों के न हों बढ़े रेट
अन्न धन की भरमार हो।

तुम जीत जाओ बड़ी लड़ाई
तुम्हारी जय जय कार हो
तुम प्रजा हो बेशक
तुम्हारी अपनी सरकार हो।
</poem>
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