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|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते
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<poem>
वो तो सब की राम कहानी कहता है |
लेकिन अपनी ख़ास ज़ुबानी कहता है |
वो तो सब की राम कहानी कहता है|<br>रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर,लेकिन अपनी ख़ास ज़ुबानी चढ़ी नदी से खारा पानी कहता है|<br><br>
रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर <br>स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,चढ़ी नदी से खारा पानी ताश का राजा, ताश की रानी कहता है|<br><br>
स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,<br>ताश शेर ग़ज़ल का राजाजब भी अच्छा होता है, ताश की रानी उलझी बातें सरल बयानी कहता है|<br><br>
शेर ग़ज़ल का जब भी अछ्छा होता है,<br>उलझी बातें सरल बयानी कहता है |<br><br> इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,<br>सब की जानी और पहचानी कहता है|</poem>
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