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ताजमहल / साहिर लुधियानवी

705 bytes added, 11:52, 8 मार्च 2009
[[Category:नज़्म]]
<poem>ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही <brref>प्रेम का द्योतक</ref>ही सही तुम को इस वादी-ए-रंगीं <ref>रमणीय स्थान</ref>से अक़ीदत ही सही<brref>श्रद्धा<br/ref> ही सही
मेरी महबूब <ref>प्रेयसी</ref> कहीं और मिला कर मुझ से! <br><br>
बज़्म-ए-शाही <ref>बादशाहों के दरबार</ref> में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी <br>सब्त <ref>अंकित</ref> जिस राह में हों सितवतसतवत-ए-शाही के निशाँ <brref>राजसी वैभव</ref> के निशाँ उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी <br><br>
मेरी महबूब ! पस-ए-पर्दा-ए-तशीरतशहीर-ए-वफ़ा <brref>तू ने सितवत प्रेम के निशानों को तो देखा होता <br>मुर्दा शाहों विज्ञापन के मक़ाबिर से बहलने वाली <br>अपने तारीक मकानों को तो देखा होता <br>परदे के पीछे<br/ref>
अनगिनत लोगों तू ने दुनिया में मुहब्बत की है सतवत<brref>कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के राजसी वैभव<br/ref>के निशानों को तो देखा होता लेकिन उन मुर्दा शाहों के लिये तशहीर का सामान नहीं मक़ाबिर<brref>मक़बरों</ref> से बहलने वाली क्योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे अपने तारीक<ref>अंधेरे<br/ref>vमकानों को तो देखा होता
ये इमारात-ओ-मक़ाबिर ये फ़सीलें, ये हिसार अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है कौन कहता है कि सादिक़<brref>पवित्र</ref> न थे जज़्बे<ref>भावनायें</ref> उनके मुतल-क़ुलहुक्म शहंशाहों की अज़मत लेकिन उन के सुतूँ लिये तशहीर<brref>दामन-ए-दहर पे उस रंग की गुलकारी है विज्ञापन<br/ref>जिस में शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का ख़ूँ सामान नहीं क्योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस<brref>निर्धन<br/ref>थे
मेरी महबूब ! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी ये इमारात-ओ-मक़ाबिर,<ref>भवन और मक़बरे</ref> ये फ़सीलें,<ref>परिकोटे</ref>ये हिसार<ref>क़िले<br/ref>जिनकी सन्नाई ने बख़्शी है इसे शक्लमुतल-ए-जमील क़ुलहुक्म<brref>उन आदेश देने में स्वतन्त्र</ref> शहंशाहों की अज़मत के प्यारों सुतूँ<ref>वैभव के मक़ाबिर रहे बेनामखम्भे</ref> सीना--नमूद दहर<brref>संसार के वक्षस्थल के</ref>के नासूर हैं ,कुहना<ref>पुराने</ref> नासूरआज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील जज़्ब है<ref>समाया हुआ है</ref> जिसमें तेरे और मेरे अजदाद<brref>पूर्वजों<br/ref>का ख़ूँ
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल मेरी महबूब ! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी जिनकी सन्नाई<brref>कारीगरी</ref> ने बख़्शी<ref>प्रदान की है</ref> है इसे शक्ल-ए-जमील<ref>सुन्दर रूप</ref>ये मुनक़्क़श दरउन के प्यारों के मक़ाबिर<ref>मक़बरे</ref> रहे बेनाम-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़ नमूद<brref>इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर अनाम और बिना निशान के<br/ref>हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील<brref>मोमबती<br/ref>
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! ये चमनज़ार<brref>उद्यान<br/ref>ये जमुना का किनारा ये महल ये मुनक़्क़श <ref>नक़्क़ाशी किए हुए</ref>दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
'''शब्दार्थ'''इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
अक़ीदत -श्रद्धा । उल्फ़त - प्रेम, लगाव । पस-ए-पर्दा - पर्दे के पीछे । तासीर-ए-वफ़ा - वफ़ा का दिखावा । मकाबिर - मक़बरा । तारीक - अंधेरे,स्याह,रौनकहीनमेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! नुमूद - {{KKMeaning}}
कंदील - मोमबत्ती, कैंडल'''मोटा पाठ'''</poem>