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Kavita Kosh से
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'''1
रोक दे कराहना कि कुछ न होगा
इससे अधिक अजीब
और वह रोता न हो
'''2
मैं घूमता हूँ
अपने भीतर साये का खंजर लिए
मैं घूमता हूँ
अपनी यादों में एक बिल्ली लिए
मैं घूमता हूँ
मुरझाए फूलों का गुलदस्ता लिए
मैं घूमता हूँ
तार-तार हुए कपड़े पहन
मैं घूमता हूँ
अपने दिल में बड़ा -सा घाव लिए '''3
यकीन करें मुझ पर
सबसे बुरी बात है यह
कि सोचता है कोई
'''4जितनी छोटी हो कविताउतना ही ज्यादा बसेगी मन में
उतना ही
ज़्यादा बसेगी
मन में
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