भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

1,288 bytes added, 20:55, 10 मार्च 2009
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
<!----BOX CONTENT STARTS------>
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''कोई हँस रहा है कोई रो रहा हैपुस्तकें <br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अकबर इलाहाबादीविश्वनाथ प्रसाद तिवारी]]
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
कोई हँस रहा है कोई रो रहा हैनही् , इस कमरे में नहींकोई पा रहा है कोई खो रहा हैउधरउस सीढ़ी के नीचेउस गैरेज के कोने में ले जाओपुस्तकेंवहाँ, जहाँ नहीं अट सकती फ्रिजजहाँ नहीं लग सकता आदमकद शीशा
कोई ताक बोरी में है किसी को है ग़फ़्लतबांध कर कोई जागता है कोई सो रहा हैचट्टी से ढँक करकुछ तख्ते के नीचेकुछ फूटे गमले के ऊपररख दो पुस्तकें
कहीँ नाउमीदी ने बिजली गिराईले जाओ इन्हें तक्षशिला- विक्रमशिलाया चाहे जहाँहमें उत्तराधिकार में नहीं चाहिए पुस्तकेंकोई बीज उम्मीद झपटेगा पास बुक परकोई ढूंढ़ेंगा लाकर की चाभीकिसी की आँखों में चमकेंगे खेतकिसी के बो रहा हैगड़े हुए सिक्केहाय हाय, समयबूढ़ी दादी सी उदास हो जाएंगी पुस्तकें
इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'पुस्तकों!यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा हैजहाँ भी रख दें वेपड़ी रहना इंतजार में
शब्दार्थ :आयेगा कोई न कोईदिग्भ्रमित बालक जरूरग़फ़्लत=भूल किसी शताब्दी मेंअंधेरे में टटोलता अपनी राह
स्पर्श से पहचान लेना उसे
आहिस्ते-आहिस्ते खोलना अपना हृदय
जिसमें सोया है अनन्त समय
और थका हुआ सत्य
दबा हुआ गुस्सा
और गूंगा प्यार
दुश्मनों के जासूस
पकड़ नहीं सके जिसे!
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,730
edits