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[[category: ग़ज़ल]]

<poem>

मस्ते-सेहरो-तौबाकुने-शाम का हूँ मैं
क़ाज़ी के गिरफ़्तार नित एलाम का हूँ मैं

बंदा कहो, ख़ादिम कहो, चाकर कहो मुझको
जो कुछ कहो सो साक़ि-ए-गुलफ़ाम का हूँ मैं

ख़िदमत से मुझे इश्क़ की है दिल से इदारत
नै मोतक़दे-कुफ़्र, न इस्लाम का हूँ मैं

नै फ़िक्र है दुनिया की न दीं का मुतलाशी
इस हस्ति-ए-मौहूम में किस काम का हूँ मैं!

यकरंग हूँ, आती नहीं ख़ुश मुझको दोरंगी
मुनकिर सुख़नो-शे'र में दुश्नाम का हूँ मैं

बंदा है ख़ुदा का तो यक़ीं कर कि बुताँ का
बंदा ब-जहाने-बेज़रो-बेदाम का हूँ मैं

है शीश-ए-मै ऐनके-पीरी मुझे 'सौदा'
नज़्ज़ाराकुन अब शैब के अय्याम का हूँ मैं

</poem>