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[[Category:ग़ज़ल]]
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उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
 
मेहरबां होके बुलालो मुझे चाहो जिस वक्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के आ भी न सकूँ
 
डाल कर ख़ाक मेरे खून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ
 
ज़ब्त कमबख्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
 
ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या कसम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ
 
उस के पहलू में जो लेजा के सुला दूँ दिल को
नींद ऎसी उसे आए के जगा भी न सकूँ
 
नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्श नहीं है कि झुका भी न सकूँ
 
बेवफा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ
 
इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ
 
[ज़ब्त=सहनशीलता)[ हसरत=इच्छा)[पहलू=गोद]
 
 
 
 
</poem>