भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

1,112 bytes added, 18:50, 1 अप्रैल 2009
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
<!----BOX CONTENT STARTS------>
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''रोटी और संसद अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले <br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[धूमिलराजस्थानी लोकगीत]]
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
एक आदमीअंजन की सीटी में म्हारो मन डोलेरोटी बेलता हैएक आदमी रोटी खाता हैएक तीसरा आदमी भी हैजो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता हैवह सिर्फ़ रोटी से खेलता हैमैं पूछता हूं--'यह तीसरा आदमी कौन है ?'मेरे देश की संसद मौन है।चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।
बीजळी को पंखो चाले, गूंज रयो जण भोरो
बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
चला चला रे ।।
 
डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेत
ढांडा की तो टोली भागे, उड़े रेत ही रेत ।।
चला चला रे ।।
 
बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे ज़ोर की सीटी
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।।
चला चला रे ।।
 
जयपुर से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।।
चला चला रे ।।<br><br>
 
'''शब्दार्थ:'''
 
डलेवर= ड्राईवर
गाबा= गाने लगना
डूंगर= पहाड़
नंदी= नदी
ढांडा= जानवर
जद= जब (जदी, जर और जण भी कहा जाता है)
असी= ऐसा, इतना
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,730
edits