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'''शीर्षक: '''अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले आओ मंदिर मस्जिद खेलें<br> '''रचनाकार:''' [[राजस्थानी लोकगीतरामकुमार कृषक]]
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अंजन की सीटी में म्हारो मन डोलेआओ मंदिर मस्जिद खेलें खूब पदायें मस्जिद को चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।कल्पित जन्मभूमि को जीतें और हरायें मस्जिद को
बीजळी को पंखो चालेसिया-राममय सब जग जानी सारे जग में राम रमा फिर भी यह मस्जिद, गूंज रयो जण भोरो बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां क्यों मस्जिद चलो हटायें मस्जिद को छोरो ।। चला चला रे ।।
डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेततोड़ें दिल के हर मंदिर को पत्थर का मंदिर गढ़ लें ढांडा मानवता पैरों की तो टोली भागे, उड़े रेत ही रेत ।। चला चला रे ।।जूती यह जतलायें मस्जिद को
बड़ी जोर बाबर बर्बर होगा लेकिन हम भी उससे घाट नहीं वह खाता था कसम खुदा की हम खा जायें मस्जिद को चाले अंजन, देवे ज़ोर की सीटीडब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।। चला चला रे ।।
जयपुर मध्यकाल की खूँ रेज़ी से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी असी जोर वर्तमान को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।। रंगें चलो चला चला रे ।।अपनी-अपनी कुर्सी का भवितव्य बनायें मस्जिद को
शब्दार्थ :राम-नाम की लूट मची है मर्यादा को क्यों छोड़ें लूटपाट करते अब सरहद पार करायें मस्जिद को
डलेवर= ड्राईवरगाबा= गाने लगनाडूंगर= पहाड़नंदी= नदी ढांडा= जानवर जद= जब (जदी, जर और जण भी कहा जाता देश हमारा है)तोंदों तक नस्लवाद तक आज़ादी असी= ऐसा, इतनाइसी मुख्य धारा में आने को धमकायें मस्जिद को
धर्म बहुत कमजोर हुआ है लकवे का डर सता रहा
अपने डर से डरे हुए हम चलो डरायें मस्जिद को
गंगाजली उठायें झूठी सरयू को गंदा कर दें
संग राम को फिर ले डूबें और डूबायें मस्जिद को
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