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{{KKRachna
|रचनाकार=गिरधर राठी
}}
<poem>
मानो तो बड़ी
वरना कुछ भी नहीं-
हलक़ में एक पल ख़ुश्की
नज़र में लम्हा भर शर्म
रात के अकेले में
बरबस दबा लेना चीख़ . . .
</poem>
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|रचनाकार=गिरधर राठी
}}
<poem>
मानो तो बड़ी
वरना कुछ भी नहीं-
हलक़ में एक पल ख़ुश्की
नज़र में लम्हा भर शर्म
रात के अकेले में
बरबस दबा लेना चीख़ . . .
</poem>