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नीम की ओट में / ऋषभ देव शर्मा

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नीम की ओट में जो कई खेल खेले,
चुभे पाँव में शूल बनकर बहुत दिन.
कामना के युवा पाहुने जो कुंवारे ,
बसे प्राण में भूल बनकर बहुत दिन..
कंटकों के , तृणों के ,उगे चिह्न सारे,
खिले देह में फूल बनकर बहुत दिन.
स्वप्न वे सब सलोने कसम वायदे वे,
उडे राह में धूल बनकर बहुत दिन ..



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