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सपना / ऋषभ देव शर्मा

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<Poem>
 
मेरे पिता ने
 
देखा था
 
एक सपना
 
कि हवाएँ आज़ाद होंगी ....
 
और वे हो गईं.
 
फिर मैंने
 
देखा एक सपना
 
कि
 
महक बसेगी
 
मेरी साँसों में ....
 
और मेरे नथुने
 
भिड़ गए आपस में
 
मुझे ही कुरुक्षेत्र बनाकर
 
अब मेरा बेटा
 
देख रहा है एक सपना
 
कि हज़ार गुलाब फिर चटखेंगे
 
पर उसे क्या मालूम कि
 
अब की बार
 
गुलाबों में
 
महक नहीं होगी !
 
 
 
 
</poem>
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