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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
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<Poem>
धर्म, भाषा, जाति, दल का, आजकल आतंक है
इन सभी का दुर्ग टूटे, एक ऐसा युद्ध हो

भर दिया भोले मनुज के, कंठ में जिसने ज़हर
वह प्रचारक मंच टूटे, एक ऐसा युद्ध हो

नागरिक के हाथ में जो, द्वेष की तलवार दे
शब्द का वह कोष टूटे, एक ऐसा युद्ध हो

रंग के या नस्ल के हित, जो कि नक़्शा नोच दे
क्रूर वह नाखून टूटे, एक ऐसा युद्ध हो

ख़ून का व्यवसाय करते, लोग कुर्सी के लिए
वोट की दूकान टूटे, एक ऐसा युद्ध हो

भीष्म-द्रोणाचार्य सारे, रोटियों पर बिक रहे
अर्जुनों का मोह टूटे, एक ऐसा युद्ध हो </Poem>