भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}} कोई ये कहदे गुलशन गुलशन <br>लाख बलाएँ एक नशेमन<br><br>
<poem>कोई ये कह दे गुलशन गुलशनलाख बलाएँ एक नशेमन<br>कामिल रेहबर क़ातिल रेहज़न <br>दिल सा दोस्त न दिल सा दुशमन<br><br> फूल खिले हैं गुलशन गुलशन<br>लेकिन अपना अपना दामन<br><br> उमरें बीतीं सदियाँ गुज़रीं<br>है वही अब तक अक़्ल का बचपन<br><br> इश्क़ है प्यारे खेल नहीं है <br>इश्क़ है कारे शीशा-ओ-आहन<br><br> खै़र मिज़ाज-ए- हुस्न की यारब<br>तेज़ बहुत है दिल की धड़कन <br><br> आज न जाने राज़ ये क्या है<br>हिज्र की रात और इतनी रोशन<br><br> आ कि न जाने तुझ बिन कल से<br>रूह है लाशा, जिस्म है मदफ़न<br><br> काँटों का भी हक़ है कुछ आखि़र <br>कौन छुड़ाए अपना दामन <br><br/poem>