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|रचनाकार= रामधारी सिंह "दिनकर"}}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 2|आगे=रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 4|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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फिरा कर्ण, त्यों 'साधु-साधु' कह उठे सकल नर-नारी,
एक सुयोधन बढ़ा, बोलते हुए, 'वीर! शाबाश !'
 
 
भरत-वंश-अवतंस पाण्डु की अर्जुन है संतान।
 
नाम-धाम कुछ कहो, बताओ कि तुम जाति हो कौन?'
 
 
साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मौन।
 
छल से माँग लिया करते हो अंगूठे का दान।
 
 
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