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|रचनाकार= रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 8|आगे=रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 10|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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'सहनशीलता को अपनाकर ब्राह्मण कभी न जीता है,
मारे बिना हृदय में अपने-आप मरा-सा जाता हूँ।