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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" }}{{KKPageNavigation|पीछे=रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 1|आगे=रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 3|संग्रहसारणी= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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वीर कर्ण, विक्रमी, दान का अति अमोघ व्रतधारी,
मोल-तोल कुछ नहीं, माँग लो जो कुछ तुम्हें सुहाए,
मुँहमाँगा ही दान सभी को हम हैं देते आएँ.  [[रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 1|<< चतुर्थ सर्ग / भाग 1]] | [[रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 3| चतुर्थ सर्ग / भाग 3 >>]]