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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दाग़ देहलवी |संग्रह= }} क्या कहिये किस तरह से जवान...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दाग़ देहलवी
|संग्रह=
}}
क्या कहिये किस तरह से जवानी गुज़र गयी
बदनाम करने आई थी बदनाम कर गयी।
क्या क्या रही सहर को शब-ए-वस्ल की तलाश
कहता रहा अभी तो यहीं थी किधर गयी।
रहती है कब बहार-ए-जवानी तमाम उम्र
मानिन्दे-बू-ए-गुल इधर आयी उधर गयी।
नैरंग-ए-रोज़गार से बदला न रंग-ए-इश्क़
अपनी हमेशा एक तरह पर गुज़र गयी।
{{KKRachna
|रचनाकार=दाग़ देहलवी
|संग्रह=
}}
क्या कहिये किस तरह से जवानी गुज़र गयी
बदनाम करने आई थी बदनाम कर गयी।
क्या क्या रही सहर को शब-ए-वस्ल की तलाश
कहता रहा अभी तो यहीं थी किधर गयी।
रहती है कब बहार-ए-जवानी तमाम उम्र
मानिन्दे-बू-ए-गुल इधर आयी उधर गयी।
नैरंग-ए-रोज़गार से बदला न रंग-ए-इश्क़
अपनी हमेशा एक तरह पर गुज़र गयी।