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|संग्रह=जन-गण-मन / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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[[Category:भूमिका]]
ग़ज़ल जैसे फ़ारसी—उर्दू के काव्य—रूप के प्रति हिन्दी में जो नया वातावरण तैयार हुआ है,निश्च्य ही इसका प्रमुख श्रेय स्वर्गीय दुष्यंत कुमार को जाता है. हालाँकि दुष्यंत कुमार के पहले, हिन्दी में ग़ज़ल रचना का शुभारंभ हो चुका था. केवल आधुनिक युग की ही बात करें तो भारतेन्दु, बद्रीनारायण चौधरी, प्रताप नारायण मिश्र,नाथू राम शर्मा ‘शंकर’, जय शंकर ‘प्रसाद’ निराला, डा. शमशेर बहादुर सिंह,त्रिलोचन,जानकी वल्लभ शास्त्री,बलबीर सिंह ‘रंग’ आदि ने हिन्दी ग़ज़ल के प्रति अपनी रुचि और रचना का परिचय दिया था . लेकिन, उक्त कवियों की ग़ज़लें जन—मानस में आटे में नमक की तरह का ही प्रभाव उत्पन्न कर सकीं. हिन्दी ग़ज़ल को एक युगान्तरकारी काव्य विधा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय दुष्यंत कुमार को ही जाता है. लेकिन 1975 में दुष्यंत के अनायास देहावसान के दस वर्ष बाद तक भी कुछ लोग कहते रहे कि हिन्दी ग़ज़ल दुष्यंत—काल में ही क़दमताल कर रही है.ऐसे कथन निश्चित ही आग्रह से युक्त एवं अतिश्योक्तिपूर्ण थे. दुष्यंत कुमार के देहावसान—काल से अब तक दुनिया भी आगे बढ़ी है और हिन्दी ग़ज़ल भी. जीवन, समाज, संस्कृति, और यथार्थ के अनेक परिपेक्ष्यों का उद्घाटन हुआ है. चेतना के नये स्तरों की निर्मिति हुई है. कला—साहित्य के क्षेत्र में अभिव्यक्ति की नई चुनौतियाँ उभरी हैं. यथार्थ पहले से अधिक सघन एवं संश्लिष्ट हुआ है.