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निशि मेघाकुल...<br>
:अमित असित धूमिल मेघों से भरा हुआ नभ का पडावपड़ाव<br>
शशि की झिलमिल-<br>
:छोटी-सी लहरों में डगमग पथहीन नाव<br>
:रह-रह कस के, स्मर कर प्रिय का दुराव-<br>
छिन में आलोकित हो उठती शत-शत तरंग<br>
:मन में आलोडित आलोड़ित सौ उमंग, सिहरते अंग<br>::उडउड़-उड उड़ जाते हैं सुधि-विहंग<br>
::कुछ दिशा-रहित, कुछ लक्ष्य-भ्रान्त<br>
::कुछ सखा-सहित, कुछ यों असंग-<br>
बँधना प्राणों से मुक प्राण...<br>
है दक्ष-यज्ञ का संविधान<br>
उर की ऊमा का लक्ष-लक्ष अंशो अंशों में पाना मरण-दान !<br>
अब डोंगी भी हिल-डोल उठी, पाकर गंगा का दूर तीर<br>
मनुआ अधीर, नयन के नीर से बोझिल गहरी बिसुध पीर<br>