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Kavita Kosh से
गीत दिवारात<br>
गा रहा अशान्त<br>
प्रेम आत्माआत्म-विस्मृत पर ल्क्ष्यलक्ष्य-च्युत शिकारी ।<br>
प्रेम वह प्रसन्न<br>
खेत में निरन्न<br>
दुर्भिक्षावसन्न<br>
सृजक कृषक खडा दीन अन्नाधिकारी ।<br><br>
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