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Kavita Kosh से
न वसंत हो, न पतझड़,<br>
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,<br>
मात्र अकेलापन अकेलेपन का सन्नाटा।<br><br>
:::मेरे प्रभु!<br>