भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
 [[रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 2|<< पिछला द्वितीय सर्ग / भाग 2]] | [[रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4| द्वितीय सर्ग / भाग 4 >>]]
कर्ण सजग है, उचट जाय गुरुवर की कच्ची नींद नहीं।
 
 
और रात-दिन मुझ पर दिखलाने रहते ममता कितनी।
 
 
सूख जायगा लहू, बचेगा हड्डी-भर ढाँचा तेरा।
 
 
इस प्रकार तो चबा जायगी तुझे भूख सत्यानाशी।
 
 
कर लेना घनघोर तपस्या वय चतुर्थ के आने पर।
 
 
 [[रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 2|<< द्वितीय सर्ग / भाग 2]] | [[रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 4|अगला द्वितीय सर्ग / भाग 4 >>]]