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|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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राजा देता मान, भूप का वह भी आदर करता है।
परशोषक, पथ-भ्रान्त मनुज को नहीं धर्म पर लाने को।
बढ़े राज्य की सीमा, जिससे अधिक जनों को लूट सकें।
और जोर से वह समाज के सिर पर चढ़ता जाता है।
धरे कुपथ पर जभी पाँव वह, तत्क्षण उसको टोक सके।
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